एक ख़्याल ऐसा भी
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एहसासों की दुनियां से दूर
लाशों के शहर में
चली आई हूँ
घरौंदा भी बनाया
और बन गयी मैं
एक ज़िंदा लाश
न कोई एहसासात
न कोई ज़ज़्बात
न कोई मुलाक़ात
रह गयी एक
ज़िंदा लाश
न कोई आस
न कोई प्यास
चलती फिरती
बस … ……
ज़िंदा लाश
--कमला सिंह 'ज़ीनत '
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