Friday, 6 June 2014

बहत्तर छेद की कश्ती -------------------------- साहिल पर रोज ही लंगर डालती हैं अनगिनत कश्तियाँ परन्तु मुझे वही कश्ती पसंद है जिसके अंदर है बहत्तर छेद उसकी सवारी का अपना मजा है डूब जाने और पार कर जाने के बीच अपने दोनो हाथों से निकालते रहना पानी कश्ती के पेंदे से बहुत अच्छा लगता है मुझे कल यदि पार करना पडे मुझे वह नदी वह झील वह समुंदर तो फिर चाहूँगी मैं बार बार इसी कश्ती की सवारी सच मुझे बहुत पसंद है बहत्तर छेद की कश्ती कमला सिंह जीनत

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

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