एक ग़ज़ल आप सबके हवाले
-----------------------------------
हर तरफ नाग -नाग मिलते हैं
चील कौवे और काग मिलते हैं
अब तो पानी से भी सहमती हूँ
झील -सूरत में आग मिलते हैं
कुछ पुराने कथन बदलते नहीं
चाँद वालों में दाग मिलते हैं
झुंड हर सु है वनसियारों का
सुर नहीं , ना ही राग मिलते हैं
खारे पानी का है समुंदर भी
अब किनारों पे झाग मिलते हैं
किस तरफ रुख करें कहो 'ज़ीनत'
सारे मनहूस बाग़ मिलते हैं
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
No comments:
Post a Comment