Monday, 14 December 2015

एक ग़ज़ल आप सबके हवाले 
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हर तरफ नाग -नाग मिलते हैं 
चील कौवे और काग मिलते हैं 

अब तो पानी से भी सहमती हूँ 
झील -सूरत में आग मिलते हैं 

कुछ पुराने कथन बदलते नहीं 
चाँद वालों में दाग मिलते हैं 

झुंड  हर सु है  वनसियारों का 
 सुर नहीं , ना ही राग मिलते हैं 

खारे पानी   का है  समुंदर भी 
अब किनारों पे झाग मिलते हैं 

किस तरफ रुख करें कहो 'ज़ीनत' 
सारे   मनहूस  बाग़ मिलते हैं 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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