Thursday, 10 December 2015

मेरी दोस्त शिकायत है तुमसे 
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बिछड़न एक टीस 
एक दर्द ,एक आह 
एक सोज़ एक साज़ 
सिहर उठती हूँ 
बस ख़याल से ही। 
और हुआ भी यही 
ईमानदारी से निभायी मैंने दोस्ती 
हर कदम साथ 
सही या गलत ,फिर भी 
शिद्दत से निभायी दोस्ती 
फिर क्यों ये सिला दिया ?
वादाखिलाफी क्यों ?
बिना बताये ,बिना जताए ले गयी तुम 
हमारी बेशकीमती यादों का खजाना ?
इस दिल के तिजोरी की 
चाभी तो एक ही  थी ..... 
तुम बिना लौटाए ख़ज़ाने के साथ 
मौत के साथ हो ली  ... ?
अब कहाँ नसीब दोस्ती मुझे ?
तनहा रह गयी मैं  ... 
अधूरी  
बिलकुल अधूरी  ... 
तुम जहां हो खुश रहना  ... 
यही दुआ है और ईश्वर से प्रार्थना भी 
अलविदा 'जया '
.... कमला सिंह 'ज़ीनत'

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