Thursday, 17 December 2015

एक ग़ज़ल आप सभी के हवाले मित्रों
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मुश्किल ये नहीं है कोई ज़ंजीर हिला दे
ये बात बडी़ है कोई तक़दीर हिला दे
सजदे में झुकी बैठी हूँ ऐ मेरे खु़दाया
किस्मत की मेरी थोडी़ सी तस्वीर हिला दे
लिखती हूँ हरइक शेर को मैं खून ए जीगर से
आसान नहीं है कोई तहरीर हिला दे
छोडा़ है निशाने पे भरोसे के कमाँ से
तूफाँ को कहाँ ताब रग-ए-तीर हिला दे
खु़द्दार का सर होता है ऐसा ही मेरे यार
दुश्मन के मुकाबिल होतो शमशीर हिला दे
"जी़नत" की दुआओं में असर देखने वालो
करवट जो दुआ लेले तो जागीर हिला दे

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