Thursday, 5 November 2015

कुछ टूटे से पत्ते
कुछ झड़े से फूल
और दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ
याद आने के तेरे
बहुत सारे कारण हैं
लाखों की भीड़ और बेशुमार शोर में भी
याद रहते हो मुझे तुम
कल पड़ोस का कालबेल
आधी रात बजाया था किसी ने
नींद मेरी उचट गई थी
नज़रे ढूंढने निकल पड़ीं दरवाज़े तक
तुम नहीँ थे वहां
लौटी जब जब तुम्हें न पाकर ये नज़रें
आखों में उभरे थे अक्स तेरे होने के
हवाओं की सांय सांय में
तुम्हें ही बोलते सुना है
पानी की बूंद जब नलके से टपकती है
सिहरा देती है वो आवाज़
टप टप टप टप

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