ऐ शह्र ए लखनऊ तेरे गुलशन में एक दिन
मुझको भी खिलके खूब महकना नसीब था
जी़नत अदब के शह्र में इक रोज़ ही सही
बुलबुल की नग़मगी में चहकना नसीब था
----कमला सिंह "ज़ीनत "
मुझको भी खिलके खूब महकना नसीब था
जी़नत अदब के शह्र में इक रोज़ ही सही
बुलबुल की नग़मगी में चहकना नसीब था
----कमला सिंह "ज़ीनत "
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