Friday, 13 November 2015

फिर आई है दीवाली 
बहुत सारे दीपों के साथ ही
बेटी याद आई है
सोचती हूं खुद की तरह ही 
उस घर आंगन को
जहाँ दीवाली तो हो पर बेटी न हो
लाख दीप जले
पर कोई कोना खाली ही रह जाता है
रोशनी कोने कोने में फैले
और वह कोना घर का कहाँ है
बेटी ही जानती है
छुपा छिपाई के खेल खेल में
घर का हर अंधेरा कोना जानती है
दीप आज भी रोशन होंगे
पर वो कोना बेटी के बगैर
अंधकार में ही रहेगा
मैं नहीं जानती वह कोना घर का
पर बेटी जानती है।
--कमला सिंह 'ज़ीनत'

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