Thursday, 5 November 2015

बोलो लिख दूँ ?
तुम्हारा नाम शह्र के फसीलों पर।
बोलो लिख दूँ
हमें तुमसे बेपनाह मुहब्बत है ?
बस इसी तरह के सवालों से 
सहम जाते हो तुम हमेशा
उंची पहाडियों पर बोलो चढ जाऊँ ?
कर आऊं ऐलान अपनी मुहब्बत का ?
डर जाते हो तुम हर बार
कुछ कमी बाकी है तुम्हारे प्यार में
आना वहीँ मिलूंगी तुम्हें
जब कह सकने की हिम्मत जुटा लोगे
तुम्हें हमसे प्यार है
और यही तहरीर लिखते आना
हर गली ,हर नुक्कड ,हर चौराहे पर
मैं इसी आरज़ू में राह तकती
उसी हिम्मत वाले टीले पर
इंतज़ार करती मिलूंगी तुम्हें।

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