एक अमृता और
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मैं जानती हूँ तुम्हें भी
और तुम्हारे फ़न को भी
मैं जानती हूँ तुम्हारी कूची
और रंग को भी
मुझे पता है तुम्हारी हर सोच
और कैनवास की जादूई ताक़त
कल रात तुमने माँगी थी न
मेरी सारी नज़में
तुम उतारना चाहते हो
कैनवास के जीगर पर
रंग बिरंगी तहरीरों के गुच्छे
ओह इमरोज़.............
इन सारी नज़मों के
मेरे अंदर से आने उतरने
और तहरीरी शक्ल लेने से पहले ही
उफ़्फ़ पगले........
तुमने तो मुकम्मल मुझे रंग डाला था । नज़मसाजी़ से पहले ही
रंग रंग रंग हुयी मैं ।
अब मेरी नज़मों में
कौन सा रंग डालोगे ?
बोलो ....बोलो न ।
कमला सिंह 'ज़ीनत'
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