Monday, 8 September 2014

एक अमृता और _________________
मैं जानती हूँ तुम्हें भी और तुम्हारे फ़न को भी मैं जानती हूँ तुम्हारी कूची और रंग को भी मुझे पता है तुम्हारी हर सोच और कैनवास की जादूई ताक़त कल रात तुमने माँगी थी न मेरी सारी नज़में तुम उतारना चाहते हो कैनवास के जीगर पर रंग बिरंगी तहरीरों के गुच्छे ओह इमरोज़............. इन सारी नज़मों के मेरे अंदर से आने उतरने और तहरीरी शक्ल लेने से पहले ही उफ़्फ़ पगले........ तुमने तो मुकम्मल मुझे रंग डाला था । नज़मसाजी़ से पहले ही रंग रंग रंग हुयी मैं । अब मेरी नज़मों में कौन सा रंग डालोगे ? बोलो ....बोलो न ।
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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