एक अमृता और
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रोशनदान पर यह गुटर गूँ का शोर
और उपर से तेरी जुदाई
जानलेवा है कमबख़्त
कबूतर को कौन समझाये
कोई इंतजा़र में है किसी के
गया था कह के लौट आऊँगा मैं
पता नहीं यह रात भी आज
लाख करवट टूटे
बिस्तर की सलवटों को
ख़्यालों के घोडे़ रौंदें
और यादों की ऐंठन में
ख़्वाबों की लपटन पिसती रहे
दीये की प्यास बुझाते बुझाते
सूख जाये आधी रात से पहले ही
तेल का पोखर
झींगुरों का गला ही बैठ जाये
सदा ए यार की जुंबिश में ।
हवाओं की साँस
वक्त़ के फेंफडे़ में छेद करते करते
थक जाए
और फिर भी तू न आये ।
गली के मुहाने पर
चौकीदार की आँखों में नींद भर आई है
वह सो चुका है
बेख़बर चाँद है
बद शक्ल बादल है
पस्त सितारे हैं
और एक मनहूस रात तेरे बिना
आज भी तू नहीं आया
फरयादी आस लगाये बैठी है
कबूतरों को कौन समझाए
रोशनदान वाले कमरे में ही
बैठी है एक मायूस कबूतरी भी
अपने कबूतर के लिये
जाने कब हो रोशनदान वाले कमरे में भी
गुटर गूँ ---------गुटर गूँ
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
और उपर से तेरी जुदाई
जानलेवा है कमबख़्त
कबूतर को कौन समझाये
कोई इंतजा़र में है किसी के
गया था कह के लौट आऊँगा मैं
पता नहीं यह रात भी आज
लाख करवट टूटे
बिस्तर की सलवटों को
ख़्यालों के घोडे़ रौंदें
और यादों की ऐंठन में
ख़्वाबों की लपटन पिसती रहे
दीये की प्यास बुझाते बुझाते
सूख जाये आधी रात से पहले ही
तेल का पोखर
झींगुरों का गला ही बैठ जाये
सदा ए यार की जुंबिश में ।
हवाओं की साँस
वक्त़ के फेंफडे़ में छेद करते करते
थक जाए
और फिर भी तू न आये ।
गली के मुहाने पर
चौकीदार की आँखों में नींद भर आई है
वह सो चुका है
बेख़बर चाँद है
बद शक्ल बादल है
पस्त सितारे हैं
और एक मनहूस रात तेरे बिना
आज भी तू नहीं आया
फरयादी आस लगाये बैठी है
कबूतरों को कौन समझाए
रोशनदान वाले कमरे में ही
बैठी है एक मायूस कबूतरी भी
अपने कबूतर के लिये
जाने कब हो रोशनदान वाले कमरे में भी
गुटर गूँ ---------गुटर गूँ
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
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