एक अमृता और
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इमरोज़ ज़रा खिड़कियों को खोल दो
मुझे गाना है गीत , मुहब्बत का
दिलजले गुज़रेंगे पास से खिड़की के
तो जलभुन मरेंगे
और मैं तर जाऊँगी
यह प्यार मेरा है ?
प्यार मैं करती हूँ ?
और ये दिलजले ------ हा हा हा हा
मजा़ आता है मुझे
जलावन को जलाने में
हम तो ऐसे ही हैं और रहेंगे भी ऐसे ही
किसी का चूल्हा जले तो जले
धुआँ उठे तो उठे
कल ही दरवज्जे पर मैं खडी़ थी
जो भी गुज़रा पास से मेरे
वो इक सवाल सा लगा मुझे
मैं आँखें पढ़ती रही
और इक खामोश मुस्कान
मेरा जवाब था
जानते हो इमरोज़ ?
लोग जितनी ख़बर दूसरों की रखते हैं ?
काश कि अपनी रख पाते ।
चलो छोडो़ बैठो मेरे पास
सुनो कुछ पुराने गीत
मैं गा रही हूँ
तुम्हारे लिये
तुम सामने बैठे रहोपलकें मेरी जम जाएँ
हसरत कम न हो ,जब हार हम जाएँ …।
तुम्हीं कह दो ...........
___कमला सिंह 'ज़ीनत'
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