एक अमृता और
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जी़नत ?
आप कौन ?
मैं अमृता
आँखें मत खोलना बंद रखो
मैं ख़्वाबों में आयी हूँ तुम्हारे
आखें मत खोलना
मुझे नहीं देख पाओगी
सुनो मुझे,सिर्फ़ सुनो तुम
आओ बातें करें
वक्त बहुत कम है
अच्छा लिख रही हो लिखती रहो
मत करना परवाह ज़माने की
मैंने भी नहीं किया
तभी तो हूँ हर एक जे़हन में जि़न्दा
कल तुम भी रहोगी मेरी तरह
(जी़नत )(अमृता)
कमला सिंह 'जी़नत 'बन कर
और सुनाओ तुमने कुछ दर्द पाला है ?
कौन है तुम्हारा इमरोज़ ?
मेरे 'इमरोज़' सा
दीवाना ,मस्ताना
अरे बता मत बस मुस्कुरा दे
कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
जानती हूँ
सुन
अगर उसमें कुर्बानी का जज़्बा है ?
अगर उसमें कुछ सुनने का साहस है ?
अगर उसमें तड़पन है ?
अगर उसमें प्यार का समुंदर है ?
अगर उसमें लाड़ है दुलार है प्यार है ?
अगर उसमें फक्कड़पन है ?
अगर उसमें सादगी है ?
तो जान रखना वह तेरा (इमरोज़) ही है
क्या नाम है उसका ?
शर्मीली कहीं की ?
बावली ,पगली
जाने दे उसको आज जा़हिर मत कर
रहने दे कल के लिये
वह तुम्हारा आखि़री सवाल होगा
और आखि़री जवाब भी
लिखो हर मौसम के एहसास को
हर मिलन की कहानी को लिखो
हर रुत की दास्तान तहरीर करो
काग़ज़ काग़ज़ उतर जाओ
कल ज़माना पढे़गा तुम्हें मेरी तरह
तुझ में कुछ बात है 'जी़नत'
स्याही की आखि़री बूँद से लिखना
नजा़क़त से उसका नाम
मैं भी पढूँगी कल को
सो जाओ गहरी नींद
कल उठना तो ज़रुर लिखना मेरे बारे में
मैं आयी थी तुझसे मिलने
चलती हूँ सवेरा होने को है
अब जाती हूँ अपने 'इमरोज़' के पास
वह उठने ही वाला होगा
मुझे उसकी सूरत तकनी है
देखूँगी चाय की चुस्की पर
उसके रुख की ऐंठन
चलती हूँ सो जाओ कल तुम्हें उठना है
मेरे साथ
मेरे होने के एहसास के साथ
(जी़नत)(अमृता)के इस मिलन को
नया आयाम दो
सो जाओ कल उठना तुम जी़नत(अमृता)
कमला सिंह 'ज़ीनत'
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