Wednesday, 3 September 2014

एक अमृता और _____________________________
आज एक दिन और सुब्ह की दस्तक और हर तरफ सन्नाटा। बाहर हो सकता है चिडि़यों ने शोर मचा रखा हो पर बंद कमरे में न तो हवा की सरसराहट है और न कोई हलचल एयर कंडिशनिंग माहौल की एक खूबी तो यह है ही एक हम ही हम हैं दुनिया में और कोई नहीं, ऐसा लगता है बस यह सोच लेना ही काफी है खूद से बातें करने के लिये । बेड पर बिखरी पडी़ है अमृता की आत्म कथा,नज़में,और अमृता कल कुछ पढा़ था और रह गया था अधूरा किताबों के चंद पन्नो में ही लपेट लेती है मुझे हर समय यह अमृता चलती रहती है बहती रहती है गुज़रती रहती है, पल पल एक मुसाफिर,एक नदी,एक रेलगाडी़ की तरह यह अमृता चाय बनाती हूँ पी लूँ,सिगरेट सुलगाती हूँ पी लूँ फिर पढूँगी वहाँ से अमृता को जहाँ कल रात छोडा़ था । आज शाम चाहती हूँ अमृता को और विस्तार से समझना और जानना आज जीऊँगी अमृता को इक जाम के बाद एक जाम के साथ जी भर पीऊँगी, क़तरा क़तरा उस फिलिंग्स को । चाटू़ँगी उसकी एक एक बूँद होश गँवाऊँगी,होश खो दूँगी आज तुझे तेरी आखों से पढ़ने को जी चाहता है अमृता, बहुत याद आ रही है उसकी मुझे, मैं बिल्कुल तंहा हू़ँ । वह बुलाने पर भी नहीं आ सकता जब उसकी मुझे ज़रुरत हो बहुत दूर है जिस्मानी वो और बहुत क़रीब है रुहानी वो तूने हर पल जिस तपाक से गुजा़रा है। अमृता जानना है मुझे,महसुसना है मुझे,अमृता मैं भी जीना चाहती हूँ तुम्हारी ही तरह एक एक एहसास को,एक जि़न्दगी को । मेरे पास आओ बिल्कुल पास किताबों के माध्यम से । मुझमें उतर जाओ, मेरा सरापा वजूद तुम हो जाओ या मैं तुम्हारे होने की दलील बन जाऊँ आज शाम मेरे रु ब रु आना हकी़कत की हम तुम्हारे साथ चियर्स करेंगे । इक खु़मार तुझमें, इक खु़मार मुझमें उतरेगा आज शाम मीना,पैमाना,जाम और एक शाम चलेगा खूब सिगरेट का दौर फिर एक सिगरेट,फिर एक सिगरेट और..............
कमला सिंह 'ज़ीनत'

2 comments:

  1. आज के चर्चा मंच पर भी आपकी इस पोस्ट का लिंक है।
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    http://charchamanch.blogspot.in/2014/08/1720.html

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