Friday, 26 September 2014

एक अमृता और
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ये दिल की आरजू़ जो है
किसी दम कम नहीं होती
कभी जम जाती है दिल में
कभी आवारा फिरती है
मुसलसल जागती है ये
मुसलसल भागती है ये
सुनो ऐ मेरे मक़सद के खु़दा
इक बात ये दिल की
यही बस आरजू़ दिल की
यही है जुस्तजू दिल की
तुम्हारा और मेरा साथ हो
एलान करती हूँ
बस उसके बाद अर्मानों का क्या
बाकी़ न ग़म कुछ भी
सफ़र हो दूर का
तन्हाई हो और साथ तेरा हो
कोई बस्ती न राहों में पडे़
बिल्कुल हो सन्नाटा
कोई नगरी न रस्ते में पडे़
न शोरोगुल ठहरे
न कोई भीड़ हो अपने सफ़र में
कोई मेला हो
फ़क़त तू और मैं बस
आसमाँ ये चाँद सूरज हों
ज़मीं हो ,गर्द हो, सन्नाटा हो, तारे, सितारे हों
समाँ ये यारा हो जाये
तू भी आवारा हो जाये
तुम्हारा और मेरा भी
ये दिल बंजारा हो जाये
ये दिल बंजारा हो जाये
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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