किस तरह उसको निकालूँ जे़ह्न से मुश्किल है वो
कुछ भी मैं सोचा करुँ हर सोच में शामिल है वो
कुछ भी मैं सोचा करुँ हर सोच में शामिल है वो
कमला सिंह 'ज़ीनत'
सभी को देती है गर्मी बराबर जिस्म से अपने
किसी इंसान से इस आग ने मज़हब नहीं पूछा
किसी इंसान से इस आग ने मज़हब नहीं पूछा
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