Saturday, 16 January 2016

एक मतला दो शेर
बात ही बात पे गुस्सा न किया करना तुम
लहजा शींरीं रहे तीता न किया करना तुम
लफ़्ज़ फा़हे की तरह रखना जहाँ भी रखना
गुफ़्तगू को कभी शीशा न किया करना तुम
खु़दको ढाला करो तुम की़मती टकसालों में
जि़ंन्दगी को मगर पैसा न किया करना तुम

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