Sunday, 12 January 2014

----------ग़ज़ल----------------
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ग़ज़ल सुन ने वाले ग़ज़ल सुन हमारा 
इसे फ़िक्र के आसमां से उतारा 

हमारी ग़ज़ल में है खुश्बू हमारी 
किसी ने न परखा किसी ने संवारा 

मेरा लहज़ा नाज़ुक है फिर भी ए यारों 
हर एक शेर, पत्थर जिगर पे उभारा 

मैं सहरा की तपती हुई रेत पर हूँ
वही रेत दरिया ,वही है नज़ारा

ए 'ज़ीनत' नहीं दम के आवाज़ दूँ मैं
मोसल्सल रहे दम उसे है पुकारा
---------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
ghazal sun ne wale ghazal sun hamara
ise fikr ke aasmaaN se utaara

hamari ghazal me hai khushbu hamari
kisi ne na parkha kisi ne sanwara

mera lahja nazuk hai phir bhi aye yaro
har ek sher patthar jigar pe ubhara

main sahra ki tapti huee ret par hun
wahi ret dariya wahi hai nazara

aye ZEENAT nahi dam ke aawaaz dun main
mosalsal rahe dam use hai pukara

....kamla singh 'zeenat'.

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