जब भी चाहा लफ़्ज़ों के मोतियों को गूँथना प्यार से
तल्ख़ बातों के सुई से है हर बार घायल किया उसने
-------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
यादों की बस्ती में आज अँधेरा बहुत है
इंतज़ार आज भी है आतिश बाज़ी का यहाँ
-------------------कमला सिंह ' ज़ीनत '
परत दर परत खुलते रहे यादों के साये मेरे
हर एक लम्हा मुझसे हिसाब मांगता रहा
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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