Tuesday, 7 January 2014

जब भी चाहा लफ़्ज़ों के मोतियों को गूँथना प्यार से 
तल्ख़ बातों के सुई से है हर बार घायल किया उसने 
-------------------कमला सिंह 'ज़ीनत' 

यादों की बस्ती में आज अँधेरा बहुत है 
इंतज़ार आज भी है आतिश बाज़ी का यहाँ 
-------------------कमला सिंह ' ज़ीनत '


परत दर परत खुलते रहे यादों के साये मेरे 
हर एक लम्हा मुझसे हिसाब मांगता रहा 
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'

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