-----उम्मीद -----
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चिलचिलाती धुप में
निगाहों पे हाथ का साया
उम्मीद से भरी नज़रें उसकी
ढलती सी पतली काया
टुकर-टुकर देखती दुनियां को
ना क्रोध ना कोई हमसाया
इक झलक पाने को पगली
ना कोई लोभ ,न माया
सुहाग या कोख़ का मर्म
क्या होता है ऐ भाया
पीड़ सोचो सब उसकी
जिसने है वक़्त से ये पाया
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
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