Saturday, 25 January 2014

-----उम्मीद -----
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चिलचिलाती धुप में 
निगाहों पे हाथ का साया 
उम्मीद से भरी नज़रें उसकी 
ढलती सी पतली काया 
टुकर-टुकर देखती दुनियां को 
ना क्रोध ना कोई हमसाया 
इक झलक पाने को पगली
ना कोई लोभ ,न माया 
सुहाग या कोख़ का मर्म 
क्या होता है ऐ भाया 
पीड़ सोचो सब उसकी 
जिसने है वक़्त से ये पाया 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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