लगी है आग चारों तरफ,
छुए अनछुए सपनो का,
पापों से अब धरती तो क्या,
आसमान जल रहा है ।
कहीं आह तो कहीं,
ब्रह्मांड जल रहा है ।
बदले की आग में,
बदले की आग में,
इंसान जल रहा है ।
छुए अनछुए सपनो का,
अरमान जल रहा है ।
कही धन,कही मन,कही वन,
कही धन,कही मन,कही वन,
और कहीं तन जल रहा है ।
पापों से अब धरती तो क्या,
आसमान जल रहा है ।
कहीं आह तो कहीं,
जिस्म जल रहे है ।
अजीब सा खेल है कल युग का,
पापी पेट के लिये तो देखो
सारा संसार जल रहा है.....
पापी पेट के लिये तो देखो
सारा संसार जल रहा है.....
........''कमला सिंह''........
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