दर्द का अफ़साना लिये फिरती हूँ ।
बिखरे रंगो का खजाना लिये फिरती हूँ ।
टूटे हुए सूरो का मयखाना लिये फिरती हूँ ।
मै वो हूँ जिसने इन्द्रधनुषी रंगो को बिखरते देखा है,
सुरो के झनकार को सिसकते देखा है ।
पेड़ से टहनियो को अलग होते देखा है ।
समुंद्र को भी हुंकारते देखा है ।
बिखरे रंगो का खजाना लिये फिरती हूँ ।
टूटे हुए सूरो का मयखाना लिये फिरती हूँ ।
छलके हुए जाम का पयमाना लिए फिरती हूँ ।
मै वो हूँ जिसने इन्द्रधनुषी रंगो को बिखरते देखा है,
सुरो के झनकार को सिसकते देखा है ।
धरती के कलेजे को फटते देखा है,
सीता जैसी नारियो को ध्ररती मे समाते देखा है ।
सीता जैसी नारियो को ध्ररती मे समाते देखा है ।
पेड़ से टहनियो को अलग होते देखा है ।
समुंद्र को भी हुंकारते देखा है ।
ये आज के वक़्त की कहानियाँ है,
जिस ने राजा को रंक और रंक को राजा होते देखा है..
जिस ने राजा को रंक और रंक को राजा होते देखा है..
.............''कमला सिंह''..............
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