------------ग़ज़ल -----------
--------------------------------
मैं खुद से खुद को भुला बैठी
दिल जो तुझसे लगा बैठी
भूल गयी,डगर मंजिल का
तेरे दर से ही राह मिला बैठी
नशा होता है क्या इश्क का
आँखों को जाम पिला बैठी
बंदगी इश्क में तेरे यार मैं
दिल का चमन खिला बैठी
अंजाम-ए-इश्क में हासिल
अश्कों से दामन भीगा बैठी
--------------कमला सिंह ज़ीनत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार- 26/08/2013 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः6 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [26.08.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1349 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDelete