उफ़ वो दिन --------------
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उफ़ वो दिन.……………
नहीं जाता मेरे ज़ेहन से
बार-बार करता है चहलकदमी
मेरे तसव्वुर के लान में
उफ़ वो दिन ………
जब भी याद करती हूँ
सिहर जाती हूँ
हो जाती हूँ
रोमांचित
मेरे अन्दर के सारे ग़म
सारा दुःख
सारी तकलीफें
पल भर में अपना बिस्तर लपेट लेती हैं
हो जाती हूँ मैं सुगन्धित
महक उठती हूँ मैं
मोगरे सी
उफ़ वो दिन ………….
आये थे तुम
मुझसे मिलने
मुझे देखने की धुन में
टकराए थे तुम
लडखडाये थे तुम
कालीन के किनारे में फंसकर
और गिरते-गिरते बचे थे
उफ़ वो दिन …………।
तुम्हारी सकपकाहट पर
जो खुलकर हंसी थी मैं
पहली बार जीवन में
हाँ पहली बार
बड़े दिनों के बाद
बड़े दिनों के बाद
उफ़ वो दिन। …………….
------------------कमला सिंह ज़ीनत
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