बस यूँ ही
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हर दिन ,हर वक़्त
हर पल ,हर सेकंड
कोई न कोई खबर आती है
मरने की ...
मैं भी तो हर रोज़ मरती हूँ
एक नए ताने
एक नए उलाहने
एक नयी बात
रूठने का डर
और एक बिछड़ने के दर्द के साथ
शब के पहलु में आने से लेकर
सुब्ह की किरणों के चूमने तक भी
मुसलसल एक ही फ़िक्र
एक ही डर
एक ही बात
फिर एक नयी मौत
फिर एक नयी मौत
--- कमला सिंह 'ज़ीनत'
अच्छी पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
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