Wednesday, 1 June 2016

कभी याद की मेरी बस्ती में भूले
अगर बचपने की वो नन्हीं सी गुडिया
मचलती,उछलती हुई पास आई
तो फिर दिल कडा़ करके ऐसे में उसको
हिरासत में लेकर बनाएंगे बंदी
निहारेंगे जी भर
बहुत प्यार देंगे
गले से लगाकर लिपट जायेंगे हम
कहां खो गई मेरी नन्हीं सी गुडिया
अरे वक्त़ तुमने ये क्या जु़ल्म ढाया
कहां थे कभी
अब कहां आ गये हम
क्या खुद
अपने बचपन को ही खा गये हम
समझ भी न पाए
समझ भी न आए
अजब दास्तां है
सुने न सुनाए
हमीं अपनी यादों में बैठे मुसलसल
बहुत याद आए
बहुत याद आए
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

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