एक ग़ज़ल हाज़िर है आपके हवाले
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लफ्ज़ सारे अयाँ हो गए
सारे किस्से बयाँ हो गए
वो हमारा हुआ हु- ब- हु
और हम कहकशाँ हो गए
बात थी आपसी कुछ मगर
फासले दरमियाँ हो गए
रफ़्ता- रफ़्ता लगी चोट यूँ
सिसकियाँ,सिसकियाँ हो गए
हम सुलगते रहे रहे दर-ब-दर
बा-ख़ुदा तितलियाँ हो गए
मौज 'ज़ीनत' वो होता रहा
और हम कश्तियाँ हो गए
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
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