Friday, 24 June 2016

एक ग़ज़ल हाज़िर है आपके हवाले 
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लफ्ज़   सारे  अयाँ  हो  गए 
सारे   किस्से   बयाँ  हो गए 

वो   हमारा  हुआ   हु- ब- हु 
और  हम  कहकशाँ  हो  गए 

बात थी आपसी  कुछ मगर 
फासले   दरमियाँ   हो  गए 

रफ़्ता-  रफ़्ता   लगी चोट यूँ 
सिसकियाँ,सिसकियाँ हो गए 

हम सुलगते रहे रहे दर-ब-दर 
बा-ख़ुदा  तितलियाँ  हो  गए 

मौज  'ज़ीनत'  वो होता रहा 
और  हम  कश्तियाँ  हो  गए 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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