उन्वान-मेरे पहलु से (नज़्म) मेरी पुस्तक 'एक अमृता और से )
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मेरे पहलु से न जाओ
अभी रुक जाओ न
बस ज़रा दम तो रुको
कुछ ज़रा मेरी सुनो
कुछ सिमट जाओ मेरी रूह के
अंदर अंदर
कुछ मेरे टाँके गिनों
कुछ मेरी आह पढ़ो
कुछ मेरे ज़ख्म पे मरहम के रखो फाहे तुम
मेरे बिस्तर पर तड़पती हुई सलवट की क़सम
चांदनी रात की बेचैन दुहाई तुझको
मेरी बाहों के हिसारों के मचलते 'जुगनू'
आओ इमरोज़,लिखूं आज तेरे पंखों पर
आओ मुट्ठी में तेरी रौशनी भर लूँ सारे
मेरे होठों पे तड़पते हुए सहरा की प्यास
मुझको क्या हो गया ,ये बात चलो समझा दो
अपनी यादों के मराहिल से मुझे बहला दो
आज सूरज की तरह मुझपे ही ढल जाओ न
मेरे पहलु से ना जाओ अभी रुक जाओ न !
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