Saturday, 8 April 2017

नज़्म (अमीर बना दो )
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सोने की नदी सा बहता है
ज़र्रा-ज़र्रा बटोर लेने की चाह में
हर रोज़ बैठती हूँ किनारे पर
चाहती हूँ छान लूँ तुम्हें तमाम
झीने आँचल को सुनहले पानी में डूबोकर
बैठी रहती हूँ मैं हर रोज़
सोना-सोना लिपट जाओ आँचल में मेरे
बना दो मुझे भी अमीर
एक चाल देखना और महसूसना चाहूंगी
अमीरी की चाल
सीना ताने निकलना है मुझे भी
दुनिया को बौना होता देखना है
मेरी हिम्मत बढ़ा दो
मेरी नींद उड़ा दो दो
मुझे अमीर बना दो
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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