Friday, 7 April 2017

एक ग़ज़ल हाज़िर है 
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जब  सितम  मेरे नाम आ गए 
ज़ख्मे  दिल  मेरे काम आ गए 

ख़ुश्क   होटों   ने  आवाज़  दी 
शैख़  खुद  लेके जाम  आ गए 

ज़ुल्म रावण का जब बढ़ गया 
काफिला  लेके  राम   आ  गए 

सुब्ह   देखी   नहीं   उम्र   भर 
आप  भी  लेके  शाम  आ गए 

बाद्शाहों   ने    की    साज़िशें 
हासिये   पे  गुलाम  आ   गए 

चलिए  'ज़ीनत'  करेँ   गुफ़्तगू 
आपके  हम  कलाम  आ  गए 

----कमला सिंह 'ज़ीनत' 

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