एक ग़ज़ल हाज़िर है
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जब सितम मेरे नाम आ गए
ज़ख्मे दिल मेरे काम आ गए
ख़ुश्क होटों ने आवाज़ दी
शैख़ खुद लेके जाम आ गए
ज़ुल्म रावण का जब बढ़ गया
काफिला लेके राम आ गए
सुब्ह देखी नहीं उम्र भर
आप भी लेके शाम आ गए
बाद्शाहों ने की साज़िशें
हासिये पे गुलाम आ गए
चलिए 'ज़ीनत' करेँ गुफ़्तगू
आपके हम कलाम आ गए
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
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