मेरी एक ग़ज़ल हाज़िर है आप सबके हवाले
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इश्क़ में तेरे क्या हो गयी
मुस्तक़िल इक दुआ गयी
इक चमन की मोहब्बत में मैं
हाय बाद- ए -सबा हो गयी
बनके तितली सी उड़ती रही
इक मुकम्मल हवा हो गयी
मेरी खुशियों यूँ देख कर
ज़िंदगी भी फ़िदा हो गयी
उसको पाते ही मैं बा-ख़ुदा
आज ख़ुद से जुदा हो गयी
आज 'ज़ीनत' ग़ज़ल आपकी
सुर्ख़ रंग- ए -हीना हो गयी
---'कमला सिंह 'ज़ीनत'
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