Thursday 14 July 2016

मेरी एक ग़ज़ल हाज़िर है आप सबके हवाले 
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इश्क़  में तेरे क्या  हो गयी 
मुस्तक़िल  इक  दुआ  गयी

इक चमन की मोहब्बत में मैं 
हाय  बाद- ए -सबा  हो  गयी 

बनके  तितली सी उड़ती रही 
इक  मुकम्मल हवा हो  गयी 

मेरी   खुशियों   यूँ  देख  कर 
ज़िंदगी  भी  फ़िदा  हो   गयी 

उसको  पाते  ही  मैं   बा-ख़ुदा
आज  ख़ुद  से  जुदा  हो  गयी

आज 'ज़ीनत' ग़ज़ल आपकी 
सुर्ख़  रंग- ए -हीना  हो  गयी   
---'कमला सिंह  'ज़ीनत'

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