मेरी एक ग़ज़ल
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आग खुद में लगाए हुए हैं
दिल में उसको बसाए हुए हैं
उसकी सरकार में इक सदी से
अपने सर को झुकाए हुए हैं
जिसको होती नहीं मैं मयस्सर
मुझपे तोहमत लगाए हुए हैं
हर सितम सह के ज़िंदगी का
गम में भी मुस्कुराए हुए हैं
जो भी आता है उसके मुक़ाबिल
उसको क़द से गिराए हुए हैं
उसकी चाहत में हम आज 'ज़ीनत'
अपना सब कुछ लुटाए हुए हैं
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 जुलाई 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब ... किसी के प्यार में सबकुछ लुटाना आसान कहाँ होता है ...
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है ...
shukriya
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