एक ग़ज़ल हाज़िर है आप सबके हवाले
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रोते रहते हैं सिसकते कम हैं
इस तरह पुतलियों में हम नम हैं
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रोते रहते हैं सिसकते कम हैं
इस तरह पुतलियों में हम नम हैं
सारी दुनियाँ खुदा सी होती गयी
हम ही बस इस ज़हान में ख़म हैं
हम ही बस इस ज़हान में ख़म हैं
नाचती है सुरूर में परियाँ
हम अकेले ही पी रहे ग़म हैं
हम अकेले ही पी रहे ग़म हैं
लग्जिशेँ आई नहीं , भटके क्या
जिस जगह थे वहीँ -वहीँ जम हैं
जिस जगह थे वहीँ -वहीँ जम हैं
दर्द ने जब भी हमको लरज़ाया
घुंघरुओं की तरह बजे छम हैं
घुंघरुओं की तरह बजे छम हैं
गुल हैं ''ज़ीनत 'हमीं हैं खुशबू भी
दुश्मनों के लिए हमीं बम हैं
दुश्मनों के लिए हमीं बम हैं
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
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