आओ फिर से बहार बनकर
चमन वालों ने पुकारा है
तितलियाँ आंखें बिछाए पड़ी हैं
पत्तियों पर शायराना शबनमी बूटे हैं
भंवरे कतार में खड़े हैं
आमद की खुशबू पसरी है
मैं भी वहीं बैठी हूं
हरी घांस पर
आओ न बहार
तुम्हारे होने और पास बैठने के पल में
घांस सहलाना तोड़ना और उसी जगह
छोड़ कर लौट जाना
बातें सुनी अनसुनी
कही अनकही
आओ न
आओ फिर से बहार बनकर
चमन वालों ने पुकारा है
तितलियाँ आंखें बिछाए पड़ी हैं
पत्तियों पर शायराना शबनमी बूटे हैं
भंवरे कतार में खड़े हैं
आमद की खुशबू पसरी है
मैं भी वहीं बैठी हूं
हरी घांस पर
आओ न बहार
तुम्हारे होने और पास बैठने के पल में
घांस सहलाना तोड़ना और उसी जगह
छोड़ कर लौट जाना
बातें सुनी अनसुनी
कही अनकही
आओ न
आओ फिर से बहार बनकर
_________कमला सिंह 'ज़ीनत'
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