Wednesday 28 October 2015

सुनो इक बात ऐ समधन हमारी
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सुनो इक बात ऐ समधन हमारी
हमारी है हर इक चिंता तुम्हारी
सजेगा घर हमारा हर खुशी से
मिटेगा अब अंधेरा रौशनी से
हमारा लाडला दुल्हा बनेगा
हम सबके वास्ते साया बनेगा
बहू की शक्ल में लाएंगे बेटी
हमारी और तुम्हारी एक रोटी
रहेगी घर में वो मेरे सलामत
ये रिश्ता यूँ रहेगा ता-क्यामत
तेरे आंसू मेरे आंसू बनेंगे
उधर तुम हम इधर सासू बनेंगे
नया अब सिलसिला सिलते हैं हम तुम
चले आओ गले मिलते हैं हम तुम
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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