Friday, 3 July 2015

एक ग़ज़ल आप सबके हवाले 
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वो   भी    मेरे  जैसा  पागल 
जो  चुपचाप   है  बैठा पागल 

दुनिया  झूठी  लगती   सारी 
 लगता  है   वो सच्चा पागल 

मुझसे  आगे  पूछते  क्यूँ  हो 
बाद मिलन के किस्सा पागल 

कश्ती  मैं   पतवार  बना  वो 
देख  के  सारा  दरिया पागल 

कोई  क्या  जाने   मैं  क्या  हूँ 
मुझको सिर्फ वो समझा पागल 

'ज़ीनत  'ज़ीनत'  रटते रटते 
खूब  चलाता  चरखा  पागल 
------कमला सिंह 'ज़ीनत'  

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