मेरी एक ग़ज़ल आप सबके हवाले
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ग़ज़ल सुनने वाले ग़ज़ल सुन हमारा
इसे फ़िक्र के आसमाँ से उतारा
हमारी ग़ज़ल में है खुशबू हमारी
किसी ने न परखा किसी ने सँवारा
मेरा लहजा नाजुक है फिर भी ऐ यारों
हर इक शेर पत्थर जिगर पे उभारा
मैं सहारा की तपती हुई रेत पर हूँ
वही रेत दरिया , वही है नज़ारा
ज़माने से लड़ती चली आ रही हूँ
यही हाल अपना ,यह किस्सा हमारा
ऐ 'ज़ीनत' नहीं दम कि आवाज़ दूँ मैं
मोसल्सल रहे दम उसे है पुकारा
----- 'कमला सिंह 'ज़ीनत'
वाह - बहुत खूब
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