मेरी एक ग़ज़ल
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ना दौलत इम्लाक के बल पर आई हूँ
मैं अपने अख्लाक़ के बल पर आई हूँ
आँधी और तूफ़ान से मेरा शिकवा क्या
शम्मा हूँ मैं ताक़ के बल पर आई हूँ
दुनियाँ वाले इज़्ज़त मुझको क्या देंगे
नाम-ए-ख़ुदा अफलाक के बल पर आई हूँ
गूंगे हैं एहसास हमारे पर फिर भी
खुश लहजा बे-बाक के बल पर आई हूँ
मिट्टी हूँ मैं गूँथ रही हूँ 'ज़ीनत' को
हिस्से-हिस्से चाक के बल पर आई हूँ
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
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