मेरी एक ग़ज़ल
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जिस्म है लेकिन जान नहीं है
तू जो नहीं तो शान नहीं है
होंठ हमारे पड़ गए पीले
मुरली है पर तान नहीं है
तुझ से दूर गए तो समझो
मेरी भी पहचान नहीं है
भूल के तुझको जीना यूँ है
फूलों संग गुलदान नहीं है
प्यार के बदले प्यार दे मुझको
वरना तू इंसान नहीं है
'ज़ीनत' को दुःख देनेवाला
निर्धन है धनवान नहीं है
----कमला 'सिंह ज़ीनत'
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteshukriya kailash ji
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-10-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1761 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
bahut shukriya
Deleteभूल के तुझको जीना यूँ है
ReplyDeleteफूलों संग गुलदान नहीं है
प्यार के बदले प्यार दे मुझको
वरना तू इंसान नहीं है
..सच जिसके दिन में प्यार नहीं वह कैसा इंसान!
बहुत सुन्दर
aapka bahut aabhar Kavita ji
Deleteबहुत ही सुन्दर गज़ल। "तुझ से दूर गए तो समझो
ReplyDeleteमेरी भी पहचान नहीं है"
बहुत सुन्दर पक्तियाँ। स्वयं शून्य
shukriya aapka
Deleteवाह ....निहायती खुबसुरत और उम्दा गजल
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग तक भी आयें, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
behad shukran
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