अकेले रोज़ अपने आप से इक जंग लड़ती है
ज़माना भागता है और वो पल - पल पिछड़ती है
गरीबी जब नहाती है किसी सरकारी नलके पर
तभी कुछ बेहयायी की नज़र गु़र्बत पे पड़ती है
____कमला सिंह "ज़ीनत "
ज़माना भागता है और वो पल - पल पिछड़ती है
गरीबी जब नहाती है किसी सरकारी नलके पर
तभी कुछ बेहयायी की नज़र गु़र्बत पे पड़ती है
____कमला सिंह "ज़ीनत "
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