ग़रीबी माँ की ममता को जब काला चाँद देती है
तो फिर वो सब्र की हर सीमा अपनी लाँघ देती है
नज़र से उसके इक पल भी कहीं हो जायें न ओझल
कमर से अपने बच्चों के वो घुँघरु बाँध देती है
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
तो फिर वो सब्र की हर सीमा अपनी लाँघ देती है
नज़र से उसके इक पल भी कहीं हो जायें न ओझल
कमर से अपने बच्चों के वो घुँघरु बाँध देती है
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
gariibi maa kii mamta ko jab kala channd deti hai
to fir wo sabr kii har seema apni apni langh deti hai
nazar se uske ik pal bhi kahin ho jaaye na ojhal
kamar se apne bachhon ke wo ghunghru bandh deti hai
----kamla singh 'zeenat'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह आज फिर से चालू हो गया है आप सभी से विनती है की कृपया आप सभी पधारें,
शनिवार- 18/10/2014 को नेत्रदान करना क्यों जरूरी है
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः35