---ग़ज़ल---------
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वक़्त के साथ चल रहे हैं हम
खुद को लेकिन बदल रहे हैं हम
सीखना ज़िंदगी का मक़सद है
गिर रहे हैं संभल रहे हैं हम
राह मुश्क़िल बहुत है काँटों भरी
फिर भी बच कर निकल रहे हैं हम
ज़िंदगी तेरी आबरू के लिए
कितने हिस्सों में पल रहे हैं हम
अपनी हस्ती को करके इक सूरज
ढल रहे हैं निकल रहे हैं हम
चांदनी रात में 'ज़ीनत' देखो
करवट-करवट बदल रहे हैं हम
----कमला सिंह 'ज़ीनत'