एक ग़ज़ल आपके हवाले
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उस दिन पगले हाथ से तेरे छूट गए
शीशे जैसा गिरकर देखो टूट गए
तेरे मेरे जो भी रिश्ते थे कोमल
गर्म हवा के चलते ही सब रूठ गए
प्यास लगी थी मुझको लेकिन सच मानो
कितनी मुश्किल से मुझ तक दो घूँट गए
राह हमारी बिलकुल ही सुनसान रही
रहज़न आये यादें तेरी लूट गए
चलते- चलते , धीरे - धीरे रस्ते पर
ग़म के सारे छाले मेरे फूट गए
क्या अब जीना 'ज़ीनत' बोलो घुट-घुट कर
ओखल में हम साँसें सारी कूट गए
---कमला सिंह 'ज़ीनत '
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