Tuesday, 27 June 2017

एक ग़ज़ल आपके हवाले 
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एक सजदा वही  क़याम हमारी  नज़र  में  है 
अब   तक  वही  इमाम   हमारी  नज़र  में है 

मसरूफ हम है जिसके तआक्कुब में रात दिन 
ऐसा    ही   एक   नाम   हमारी   नज़र  में है 

देखोगे तुम तो  शाम-ए- अवध  भूल जाओगे 
इतनी   हसीन    शाम   हमारी   नज़र  में  है 

दीदार  जिसकी  करते थे  हम ताज की तरह 
खुश- रंग ,  दरो-बाम ,  हमारी  नज़र  में  है 

हर   वक़्त   जो   हमारी   हदें   खींचते   रहे 
उनका   भी  एहतराम   हमारी  नज़र  में  है 

सब  कुछ  फ़ना है 'ज़ीनत 'यादों की भीड़ में 
बस  इक शिकस्ता -जाम  हमारी नज़र में है 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत '

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर...।
    नजर औऱ नजरिया सही कहा सब हमारी नजर में है...

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