Monday 28 October 2013

वो   बहुत लाजबाब  है मेरा 
सुर्ख ताज़ा  गुलाब है  मेरा 

आँख भर उसको रोज़ जीती हूँ 
खुशनुमा  एक ख्वाब  है मेरा 

उसके खुश्बू से हूँ  मॉत्तर मैं  
महका महका  नवाब है मेरा 

रात  उससे  ही जगमगाती है 
पुरकशिश  माहताब  है   मेरा 

जब बरसती हूँ उसकी यादों में 
फुट   पड़ता   हुबाब  है  मेरा 

रौशनी  बस उसी  से है ज़ीनत 
इक   वही   आफताब  है  मेरा 
---------कमला सिंह ज़ीनत  

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