कभी हँसाता है मुझको कभी रुलाता है
वो इस तरीके से आकर मुझे सताता है
वो इस तरीके से आकर मुझे सताता है
कहाँ तलक मैं ख़्यालात को ज़ंजीर करुँ
जकड़ के बैठूँ मगर फिर भी याद आता है
जकड़ के बैठूँ मगर फिर भी याद आता है
बिठा के रोज़ मुझे अपने दिल के मक़तब में
वो अपने प्यार का कलमा मुझे पढा़ता है
वो अपने प्यार का कलमा मुझे पढा़ता है
मैं उससे रुठूँ तो बेचैन होने लगता है
मनाने बैठूँ तो अक्सर वो रुठ जाता है
मनाने बैठूँ तो अक्सर वो रुठ जाता है
न जाने कैसी है आदत ख़राब ये उसकी
हमारी आँखों से वो नींद ही उडा़ता है
हमारी आँखों से वो नींद ही उडा़ता है
उचट ही जाती हैं नींदें हमारी रातों को
वो आस - पास नए गीत गुनगुनाता है
वो आस - पास नए गीत गुनगुनाता है
कभी मैं पूछूँगी उसके करीब ये जाकर
वो छोड़कर मुझे क्या अपने घर भी जाता है
वो छोड़कर मुझे क्या अपने घर भी जाता है
किसे बसायेगा "जी़नत" वहाँ ख़बर तो लें
सुनहली रेत पे वो किसका घर बनाता है
सुनहली रेत पे वो किसका घर बनाता है
-------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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