चार मिसरे
वो अपने पाप को चेहरे पे मलते रहते हैं
छुपे न पाप तो दुनिया से जलते रहते हैं
ज़माना हँसता है इनकी गुलाटियों के सबब
जो बंदरों से उचक कर उछलते रहते हैं
छुपे न पाप तो दुनिया से जलते रहते हैं
ज़माना हँसता है इनकी गुलाटियों के सबब
जो बंदरों से उचक कर उछलते रहते हैं
No comments:
Post a Comment