Sunday 15 September 2013

ग़ज़ल सुन ने वाले ग़ज़ल सुन हमारा 
इसे फिक्र के आसमां से  उतारा 

हमारी ग़ज़ल में है खुशबू हमारी 
किसी ने न परखा किसी ने संवारा 

मेरा लहजा नाज़ुक है फिर भी ए यारों 
हर एक शेर पत्थर जिगर पे उभारा 

मैं  सहरा की तपती हुई रेत पर हूँ 
वही रेत दरिया ,वही है नज़ारा 

ए ज़ीनत नहीं दम के आवाज़ दूँ मैं 
मोसल्सल रहे दम उसे है पुकारा 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 

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