Friday, 10 November 2017

प्यार मुहब्बत  ख़ुशियाँ जिस  पर यारों हमने वार दिया 
उस  ज़ालिम   ने   बेदर्दी  से   तन्हा  करके  मार  दिया 

उसकी  रूह   से  कोई   पूछे   वो   सच   बात  बताएगी 
जंगल  को  गुलज़ार  बना कर  मैंने  इक  संसार  दिया 

बीच लहर में जिस दिन कश्ती उसकी थी मजबूर बहुत 
मैंने  अपनी  तोड़  दी  कश्ती  और  उसे  पतवार  दिया 

हाय  रे  मेरी  क़िस्मत  कैसी  साजिश  तेरी  है ज़ालिम 
जब   भी जीत का मौक़ा आया जीत के बदले हार दिया 

'ज़ीनत' तुझसे क्या दुख रोती  सबका मालिक तू मौला 
साँसें  दी  हैं  शुक्र  है  तेरा  लेकिन  क्यों  बीमार   दिया 

----कमला सिंह 'ज़ीनत'

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