प्यार मुहब्बत ख़ुशियाँ जिस पर यारों हमने वार दिया
उस ज़ालिम ने बेदर्दी से तन्हा करके मार दिया
उसकी रूह से कोई पूछे वो सच बात बताएगी
जंगल को गुलज़ार बना कर मैंने इक संसार दिया
बीच लहर में जिस दिन कश्ती उसकी थी मजबूर बहुत
मैंने अपनी तोड़ दी कश्ती और उसे पतवार दिया
हाय रे मेरी क़िस्मत कैसी साजिश तेरी है ज़ालिम
जब भी जीत का मौक़ा आया जीत के बदले हार दिया
'ज़ीनत' तुझसे क्या दुख रोती सबका मालिक तू मौला
साँसें दी हैं शुक्र है तेरा लेकिन क्यों बीमार दिया
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
लाजवाब गजल.....
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