मेरी एक ग़ज़ल आप सबके हवाले
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आज की रात तू ज़हर कर दे
ज़िन्दगी मेरी मुख़्तसर कर दे
या तो मुझको तमाम कर खुद में
या तो खुद को मेरी नज़र कर दे
उम्र अपनी मेरी मुहब्बत में
एक सजदे में तू बसर कर दे
मैं तुझे चाहती हूँ ऐ ज़ालिम
तू ज़माने को ये खबर कर दे
नाम से तेरे जानी जाऊँ मैं
मुझपे बस इतनी सी मेहर कर दे
कुछ न हो सके तो 'ज़ीनत' के लिए
आ मेरी पुतलियों को तर कर दे
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकमला सिंह रावत की कविता अच्छी लगी. अंतिम पंक्ति 'मेरी पलकों को थोड़ा नम कर दे.' होती तो बेहतर होता.
ReplyDeletesir main rawat nahi zeenat hun
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteकुछ न हो सके तो 'ज़ीनत' के लिए
ReplyDeleteआ मेरी पुतलियों को तर कर दे ... vaah